संसदीय समितियां

 संसदीय समितियां 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-105 में भी इन समितियों के बारें में बताया गया है।भारतीय संसद का क्षेत्र काफी विस्तृत है, इसका काफी कार्य सभा की समितियों द्वारा निपटाया जाता है, जिन्‍हें संसदीय समितियां कहते हैं, यह समितियां अध्‍यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित की जाती है| दुसरे शब्दों में सरकार के प्रशासनिक कार्यों का पुनरीक्षण करने,अनेक प्रकार के जटिल प्रस्तावों और अधीनस्थ विधान की समीक्षा करने के लिए सदनों द्वारा संसदीय समितियां गठित की जाती हैं। समितियों द्वारा प्राय: ऐसे मामलों के संबंध में कार्य किया जाता है, जिन पर अधिक गहराई से, सावधानी और शीघ्रता, दलगत राजनीति से रहित वातावरण में विचार करने की आवश्यकता होती है।संसदीय समिति 1 वर्ष के लिए या अध्यक्ष द्वारा निर्धारित अवधि के लिए या नई समिति के मनोनीत होने तक कार्य करती हैं। 


मॉटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के आधार पर 1921 से संसदीय समितियाँ अस्तित्व में आई थी | भारतीय संसदीय प्रणाली की अधिकांश प्रथाएँ ब्रिटिश संसद की देन हैं और संसदीय समितियों के गठन का विचार भी वहीं से आया है। विश्व की पहली संसदीय समिति का गठन वर्ष 1571 में ब्रिटेन में किया गया था। यदि हम भारत की बात करें तो यहाँ पहली लोक लेखा समिति का गठन अप्रैल 1950 में किया गया था।


Parliamentary Committees)

संसद के मुख्य रूप से दो कार्य होते हैं, जिसमें पहला कानून बनाना और दूसरा सरकार की कार्यात्मक शाखा का निरीक्षण करना होता है । इन्ही कार्यों को सक्रियता से सम्पादित करनें के लिये संसदीय समितियों को एक माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है। सैद्धांतिक रूप से धारणा यह है, कि संसदीय स्थायी समितियों में अलग-अलग दलों के सांसदों के छोटे-छोटे समूह होते हैं जिन्हें उनकी व्यक्तिगत रुचि और विशेषता के आधार पर बाँटा जाता है, ताकि वह किसी विशिष्ट विषय पर विचार-विमर्श कर सकें।


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संसद में होनें वाले कार्यों की अधिकता को देखते हुए वहाँ प्रस्तुत किये गये सभी विधेयकों पर विस्तार से चर्चा करना संभव नहीं होता है, ऐसे में संसदीय समितियों को एक मंच के रूप में प्रयोग कर प्रस्तावित कानूनों पर चर्चा की जाती है। समितियों की चर्चाएँ बंद दरवाज़ों के अन्दर होती हैं और उसके सदस्य अपने दल के सिद्धांतों से भी बंधे नहीं होते, जिसके कारण वह किसी विषय विशेष पर खुलकर अपने विचार रख सकते हैं।


समय के विस्तार के साथ नीति-निर्माण की प्रक्रिया भी काफी जटिल हो गई है, और सभी नीति-निर्माताओं के लिये इन जटिलताओं की बराबरी करना तथा समस्त मानवीय क्षेत्रों तक अपने ज्ञान को विस्तारित करना संभव नहीं है। इसीलिये सांसदों को उनकी विशेषज्ञता और रुचि के अनुसार अलग-अलग समितियों में रखा जाता है ताकि उस विशिष्ट क्षेत्र में एक विस्तृत और बेहतर नीति का निर्माण किया जा सके।


संसदीय समितियों के प्रकार (Types of Parliamentary Committees)

संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं, जो इस प्रकार है-

  • स्थायी समितियाँ (Standing committees)
  • अस्थायी समितियाँ या तदर्थ समितियाँ (Temporary committees)

1.स्थायी समितियाँ

स्थायी समितियों का चुनाव सदन द्वारा अथवा लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रतिवर्ष किया जाता है और इन समितियों का कार्य निरंतर चलता रहता है।इसका सम्बंध वार्षिक बजट की वित्तीय समिति से होता है। इसे अनुमान करने वाली वित्तीय समिति भी कहा जा सकता है। इस समिति में 30 सदस्य, सभी के सभी लोकसभा के होते हैं।इस समिति के सदस्य मंत्री नहीं हो सकते हैं। यह समिति वार्षिक अनुमानित बजट का सूक्ष्म अध्ययन तथा जांच करती है और वित्तीय प्रशासन में मितव्ययता, कुशलता, दक्षता, सुधार तथा वैकल्पिक नीतियों के संबंध में सुझाव देती है। समिति के सुझावों पर सदन में बहस नहीं होती है परंतु यह समिति अपना कार्य वर्ष भर करती है तथा अपना दृष्टिकोण सदन के समक्ष रखती है।इसमें और भी समितियाँ शामिल होती हैं, जो इस प्रकार है –

  • लोक लेखा समिति
  • प्राक्कलन समिति
  • सार्वजनिक उपक्रम समिति
  • एस.सी. व एस.टी. समुदाय के कल्याण संबंधी समिति
  • कार्यमंत्रणा समिति
  • विशेषाधिकार समिति
  • विभागीय समिति

2.अस्थायी समितियाँ या तदर्थ समितियाँ

किसी एक विशेष उद्देश्य के लिये अस्थायी समितियों का गठन किया जाता है | उदाहरण के तौर पर, यदि किसी एक विशिष्ट विधेयक पर चर्चा करने के लिये कोई समिति गठित की जाती है, तो उसे अस्थायी समिति कहा जाएगा। उद्देश्य की पूर्ति हो जाने के बाद संबंधित अस्थायी समिति को भी समाप्त कर दिया जाता है। इस प्रकार की समितियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

1.जाँच समितियाँ

इनका निर्माण किसी तत्कालीन घटना की जाँच करने के लिये किया जाता है।

2.सलाहकार समितियाँ

इनका निर्माण किसी विशेष विधेयक पर चर्चा करने के लिये किया जाता है।

इसके अलावा 24 विभागीय समितियाँ भी होती हैं,जो विभाग से संबंधित विषयों पर कार्य करती है। प्रत्येक विभागीय समिति में अधिकतम 31 सदस्य होते हैं, जिसमें से 21 सदस्यों का मनोनयन स्पीकर द्वारा एवं 10 सदस्यों का मनोनयन राज्यसभा के सभापति द्वारा किया जा सकता है। कुल 24 समितियों में से 16 लोकसभा के अंतर्गत व 8 समितियाँ राज्यसभा के अंतर्गत कार्य करती हैं। इन समितियों का मुख्य कार्य अनुदान संबंधी मांगों की जाँच करना एवं उन मांगों के संबंध में अपनी रिपोर्ट देना होता है।










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