मुख्य रूप से पत्रों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है :
(1) अनौपचारिक-पत्र (Informal Letter)
(2) औपचारिक-पत्र
(Formal Letter)
(1) अनौपचारिक पत्र-
वैयक्तिक अथवा व्यक्तिगत पत्र अनौपचारिक पत्र की श्रेणी में आते हैं।
वैयक्तिक अथवा व्यक्तिगत पत्र-
वैयक्तिक पत्र से तात्पर्य ऐसे पत्रों से हैं, जिन्हें व्यक्तिगत मामलों के सम्बन्ध में पारिवारिक सदस्यों, मित्रों एवं अन्य प्रियजनों को लिखा जाता हैं। हम कह सकते हैं कि वैयक्तिक पत्र का आधार व्यक्तिगत सम्बन्ध होता हैं। ये पत्र हृदय की वाणी का प्रतिरूप होते हैं।
अनौपचारिक पत्र अपने मित्रों, सगे-सम्बन्धियों एवं परिचितों को लिखे जाते है। इसके अतिरिक्त सुख-दुःख, शोक, विदाई तथा निमन्त्रण आदि के लिए पत्र लिखे जाते हैं, इसलिए इन पत्रों में मन की भावनाओं को प्रमुखता दी जाती है, औपचारिकता को नहीं। इसके अंतर्गत पारिवारिक या निजी-पत्र आते हैं।
पत्रलेखन सभ्य समाज की एक कलात्मक देन है। मनुष्य चूँकि सामाजिक प्राणी है इसलिए वह दूसरों के साथ अपना सम्बन्ध किसी-न-किसी माध्यम से बनाये रखना चाहता है। मिलते-जुलते रहने पर पत्रलेखन की तो आवश्यकता नहीं होती, पर एक-दूसरे से दूर रहने पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के पास पत्र लिखता है।
सरकारी पत्रों की अपेक्षा सामाजिक पत्रों में कलात्मकता अधिक रहती है; क्योंकि इनमें मनुष्य के ह्रदय के सहज उद्गार व्यक्त होते है। इन पत्रों को पढ़कर हम किसी भी व्यक्ति के अच्छे या बुरे स्वभाव या मनोवृति का परिचय आसानी से पा सकते है।
एक अच्छे सामाजिक पत्र में सौजन्य, सहृदयता और शिष्टता का होना आवश्यक है। तभी इस प्रकार के पत्रों का अभीष्ट प्रभाव हृदय पर पड़ता है।
इसके कुछ औपचारिक नियमों का निर्वाह करना चाहिए।
(i) पहली बात यह कि पत्र के ऊपर दाहिनी ओर पत्रप्रेषक का पता और दिनांक होना चाहिए।
(ii) दूसरी बात यह कि पत्र जिस व्यक्ति को लिखा जा रहा हो- जिसे 'प्रेषिती' भी कहते हैं- उसके प्रति, सम्बन्ध के अनुसार ही समुचित अभिवादन या सम्बोधन के शब्द लिखने चाहिए।
(iii) यह पत्रप्रेषक और प्रेषिती के सम्बन्ध पर निर्भर है कि अभिवादन का प्रयोग कहाँ, किसके लिए, किस तरह किया जाय।
(iv) अँगरेजी में प्रायः छोटे-बड़े सबके लिए 'My
dear' का प्रयोग होता है, किन्तु हिन्दी में ऐसा नहीं होता।
(v) पिता को पत्र लिखते समय हम प्रायः 'पूज्य पिताजी' लिखते हैं।
(vi) शिक्षक अथवा गुरुजन को पत्र लिखते समय उनके प्रति आदरभाव सूचित करने के लिए 'आदरणीय' या 'श्रद्धेय'-जैसे शब्दों का व्यवहार करते हैं।
(vii) यह अपने-अपने देश के शिष्टाचार और संस्कृति के अनुसार चलता है।
(viii) अपने से छोटे के लिए हम प्रायः 'प्रियवर', 'चिरंजीव'-जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं।
अनौपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें :
(i) भाषा सरल व स्पष्ट होनी चाहिए।
(ii) संबंध व आयु के अनुकूल संबोधन, अभिवादन व पत्र की भाषा होनी चाहिए।
(iii) पत्र में लिखी बात संक्षिप्त होनी चाहिए
(iv) पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।
(v) भाषा और वर्तनी-शुद्ध तथा लेख-स्वच्छ होना चाहिए।
(vi) पत्र प्रेषक व प्रापक वाले का पता साफ व स्पष्ट लिखा होना चाहिए।
(vii) कक्षा/परीक्षा भवन से पत्र लिखते समय अपने नाम के स्थान पर क० ख० ग० तथा पते के स्थान पर कक्षा/परीक्षा भवन लिखना चाहिए।
(viii) अपना पता और दिनांक लिखने के बाद एक पंक्ति छोड़कर आगे लिखना चाहिए।
अनौपचारिक-पत्र का प्रारूप
प्रेषक का पता
..................
...................
...................
दिनांक ...................
संबोधन
...................
अभिवादन ...................
पहला अनुच्छेद ................... (कुशलक्षेम)...................
दूसरा अनुच्छेद ...........(विषय-वस्तु-जिस बारे में पत्र लिखना है)............
तीसरा अनुच्छेद ................ (समाप्ति)................
प्रापक के साथ प्रेषक का संबंध
प्रेषक का नाम ................
अनौपचारिक-पत्र की प्रशस्ति, अभिवादन व समाप्ति
(1) अपने से बड़े आदरणीय संबंधियों के लिए :
प्रशस्ति - आदरणीय, पूजनीय, पूज्य, श्रद्धेय आदि।
अभिवादन - सादर प्रणाम, सादर चरणस्पर्श, सादर नमस्कार आदि।
समाप्ति - आपका बेटा, पोता, नाती, बेटी, पोती, नातिन, भतीजा आदि।
(2) अपने से छोटों या बराबर वालों के लिए :
प्रशस्ति - प्रिय, चिरंजीव, प्यारे, प्रिय मित्र आदि।
अभिवादन - मधुर स्मृतियाँ, सदा खुश रहो, सुखी रहो, आशीर्वाद आदि।
समाप्ति - तुम्हारा, तुम्हारा मित्र, तुम्हारा हितैषी, तुम्हारा शुभचिंतक आदि।
(2)औपचारिक पत्र-
प्रधानाचार्य, पदाधिकारियों, व्यापारियों, ग्राहकों, पुस्तक विक्रेता, सम्पादक आदि को लिखे गए पत्र औपचारिक पत्र कहलाते हैं।
औपचारिक पत्रों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता हैं-
(1) प्रार्थना-पत्र/आवेदन पत्र (Request Letter)(अवकाश, सुधार, आवेदन के लिए लिखे गए पत्र आदि)।
(2) सम्पादकीय पत्र (Editorial Letter) (शिकायत, समस्या, सुझाव, अपील और निवेदन के लिए लिखे गए पत्र आदि)
(3) कार्यालयी-पत्र (Official Letter)(किसी सरकारी अधिकारी, विभाग को लिखे गए पत्र आदि)।
(4) व्यवसायिक-पत्र (Business Letter)(दुकानदार, प्रकाशक, व्यापारी, कंपनी आदि को लिखे गए पत्र आदि)।
(1) प्रार्थना-पत्र (Request Letter)-
जिन पत्रों में निवेदन अथवा प्रार्थना की जाती है, वे 'प्रार्थना-पत्र' कहलाते हैं।
ये अवकाश, शिकायत, सुधार, आवेदन के लिए लिखे जाते हैं।
(2) सम्पादकीय पत्र (Editorial Letter)-
सम्पादक के नाम लिखे जाने वाले पत्र को संपादकीय पत्र कहा जाता हैं। इस प्रकार के पत्र सम्पादक को सम्बोधित होते हैं, जबकि मुख्य विषय-वस्तु 'जन सामान्य' को लक्षित कर लिखी जाती हैं।
(3) कार्यालयी-पत्र (Official Letter)-
विभिन्न कार्यालयों के लिए प्रयोग किए जाने अथवा लिखे जाने वाले पत्रों को 'कार्यालयी-पत्र' कहा जाता हैं।
ये पत्र किसी देश की सरकार और अन्य देश की सरकार के बीच, सरकार और दूतावास, राज्य सरकार के कार्यालयों, संस्थानों आदि के बीच लिखे जाते हैं।
(4) व्यापारी अथवा व्यवसायिक पत्र (Business Letter)-
व्यवसाय में सामान खरीदने व बेचने अथवा रुपयों के लेन-देन के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं, उन्हें 'व्व्यवसायिक पत्र' कहते हैं।
आज व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता का दौर हैं। प्रत्येक व्यापारी यही कोशिश करता हैं कि वह शीर्ष पर विद्यमान हो। व्यापार में बढ़ोतरी बनी रहे, साख भी मजबूत हो, इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जिन पत्रों को माध्यम बनाया जाता हैं, वे व्यापारिक पत्रों की श्रेणी में आते हैं। इन पत्रों की भाषा पूर्णतः औपचारिक होती हैं।
औपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें :
(i)औपचारिक-पत्र नियमों में बंधे हुए होते हैं।
(ii)इस प्रकार के पत्रों में नपी-तुली भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें अनावश्यक बातों (कुशलक्षेम आदि) का उल्लेख नहीं किया जाता।
(iii)पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।
(iv)पत्र की भाषा-सरल, लेख-स्पष्ट व सुंदर होना चाहिए।
(v)यदि आप कक्षा अथवा परीक्षा भवन से पत्र लिख रहे हैं, तो कक्षा अथवा परीक्षा भवन (अपने पता के स्थान पर) तथा क० ख० ग० (अपने नाम के स्थान पर) लिखना चाहिए।
(vi)पत्र पृष्ठ के बाई ओर से हाशिए
(Margin Line) के साथ मिलाकर लिखें।
(vii)पत्र को एक पृष्ठ में ही लिखने का प्रयास करना चाहिए ताकि तारतम्यता बनी रहे।
(viii)प्रधानाचार्य को पत्र लिखते समय प्रेषक के स्थान पर अपना नाम, कक्षा व दिनांक लिखना चाहिए।
औपचारिक-पत्र के निम्नलिखित सात अंग होते हैं :
(1) पत्र प्रापक का पदनाम तथा पता।
(2) विषय- जिसके बारे में पत्र लिखा जा रहा है, उसे केवल एक ही वाक्य में शब्द-संकेतों में लिखें।
(3) संबोधन- जिसे पत्र लिखा जा रहा है- महोदय, माननीय आदि।
(4) विषय-वस्तु-इसे दो अनुच्छेदों में लिखें :
पहला अनुच्छेद - अपनी समस्या के बारे में लिखें।
दूसरा अनुच्छेद - आप उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं, उसे लिखें तथा धन्यवाद के साथ समाप्त करें।
(5) हस्ताक्षर व नाम- भवदीय/भवदीया के नीचे अपने हस्ताक्षर करें तथा उसके नीचे अपना नाम लिखें।
(6) प्रेषक का पता- शहर का मुहल्ला/इलाका, शहर, पिनकोड।
(7) दिनांक।
औपचारिक-पत्र का प्रारूप
प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र
प्रधानाचार्य,
विद्यालय का नाम व पता.............
विषय : (पत्र लिखने के कारण)।
माननीय महोदय,
पहला अनुच्छेद ......................
दूसरा अनुच्छेद ......................
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
क० ख० ग०
कक्षा......................
दिनांक ......................
व्यवसायिक-पत्र
प्रेषक का पता......................
दिनांक ......................
पत्र प्रापक का पदनाम,
पता......................
विषय : (पत्र लिखने का कारण)।
महोदय,
पहला अनुच्छेद ......................
दूसरा अनुच्छेद ......................
भवदीय,
अपना नाम
औपचारिक-पत्र की प्रशस्ति, अभिवादन व समाप्ति
प्रशस्ति - श्रीमान, श्रीयुत, मान्यवर, महोदय आदि।
अभिवादन - औपचारिक-पत्रों में अभिवादन नहीं लिखा जाता।
समाप्ति - आपका आज्ञाकारी शिष्य/आज्ञाकारिणी शिष्या, भवदीय/भवदीया, निवेदक/निवेदिका,
शुभचिंतक, प्रार्थी आदि।
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