राज्यसभा सांसद कैसे बनते हैं
राज्यसभा को काउंसिल ऑफ स्टेट्स भी कहा जाता है | जिसकी घोषणा सभापीठ द्वारा सभा में 23 अगस्त, 1954 को की गई थी। राज्यसभा राज्यों की परिषद् है, जिसके माध्यम से संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है। राज्यसभा अप्रत्यक्ष रूप से लोगों का प्रतिनिधित्व करती है, क्योंकि राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है। राज्यसभा के सदस्यों के निर्वाचन में आनुपातिक पद्धति के अनुसार ‘एकल संक्रमणीय मत प्रणाली’ का प्रयोग किया जाता है।राज्यसभा का सदस्य भी उतना ही अहम होता है, जितना कि लोकसभा का होता है |
भारतीय संविधान के अनुसार भारत में बहुदलीय शासन पद्धति है। यहां पर अनेक राष्ट्रीय और प्रांतीय पार्टियां हैं, जो चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय संसद का चुनाव दो पद्धतियों प्रत्यक्षऔर अप्रत्यक्षरूप से होता है। प्रत्यक्ष चुनाव के अंतर्गत जनता द्वारा सरकार का चुनाव किया जाता है। वह लोकसभा का चुनाव होता है, जिसमें जनता सरकार का चयन करनें हेतु मतदान करती है। जिसके पश्चात मतदान में जीतने वाली पार्टी सरकार का गठन करती है।
दूसरा चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है। यह प्रक्रिया राज्यसभा के चुनाव में अपनायी जाती है। राज्यसभा को उच्च सदन भी कहा जाता है, और लोकसभा को निम्न सदन भी कहा जाता है। उच्च सदन कभी भी भंग नहीं होता है। यहां पर सदस्यों का चुनाव अलग- अलग अंतराल पर होता है। राज्यसभा के सदस्य कभी भी एक साथ अपना कार्यकाल पूरा नहीं करते हैं, इसलिये राज्यसभा का चुनाव लोकसभा चुनाव से बिल्कुल भिन्न होता है।
राज्यसभा का स्वरूप (Rajya Sabha Form)
भारतीय संविधान में राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या निर्धारित की गई है। इसमें से राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों के 238 प्रतिनिधि और राष्ट्रपति द्वारा 12 मनोनीत प्रतिनिधि हो सकते हैं। अनुच्छेद 84 के अंतर्गत भारत का नागरिक होने के अलावा राज्यसभा की सदस्यता हेतु न्यूनतम आयु 30 वर्ष तय की गई है। संविधान के अनुच्छेद 102 में दिवालिया और कुछ अन्य वर्ग के लोगों को राज्यसभा सदस्य बनने के लिए अयोग्य घोषित किया गया है। जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 154 के अनुसार राज्यसभा सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।
How To Become Rajya Sabha MP
राज्यसभा चुनाव के लिए आम आदमी मतदान नहीं कर सकता है, इसके लिए जनता द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधि अर्थात विधायक ही इस चुनाव में भाग लेते है। राज्यसभा में पहुंचने के लिए कुल विधायकों की संख्या को जितने सदस्य चुने जाने हैं, उनमें एक जोड़कर विभाजित किया है।
इसे ऐसे समझिए
पूरी प्रक्रिया को विस्तार से समझने के लिए उत्तर प्रदेश का उदाहरण लेते हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधायक हैं, और यहां से 11 राज्सयभा सदस्यों का चुनाव होना है, तो प्रत्येक सदस्य को कितने विधायकों का वोट चाहिए ? यह निर्धारित करके लिए कुल विधायकों की संख्या को 11 सीटों में 1 जोड़कर विभाजित किया जाता है | अर्थात 403 को 12 से विभाजित करेंगे यानी 33 और फिर इसमें 1 जोड़ दिया जाता है, अर्थात 34। इसका अर्थ यह कि उत्तर प्रदेश से किसी भी सदस्य को राज्यसभा पहुंचने के लिए कम से कम 34 वोटों की आवश्यकता होगी।
प्राथमिकता वोट का रोल (Roll Of Priority Vote)
प्रत्येक विधायक अपना वोट प्राथमिकता के हिसाब से देता है। यदि मैदान में 12 उम्मीदवार हैं, तो प्रत्येक विधायक को बताना होगा, कि उसकी पहली पसंद कौन है दूसरी पसंद कौन और इसी तरह सभी 12 उम्मीदवारों के लिए अपनी प्राथमिकता बतानी होगी। इस प्रकार से जिस उम्मीदवार को पहली प्राथमिकता के 34 वोट मिल गए, वह जीत जाता है और जिसे नहीं मिलते उसके लिए चुनाव होता है।
भारत में राज्यसभा के सभापति उपराष्ट्रपति होते हैं। राज्यसभा के सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं। सभी सदस्यों में से एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल प्रत्येक दो वर्ष में पूरा हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येक दो वर्ष में राज्यसभा में एक तिहाई नए सदस्य आते हैं, जिसके कारण यह सदन कभी भंग नहीं होता है।
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