Zero FIR

 Zero FIR क्या होता है

यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें अपराधिक घटना का शिकार व्‍यक्ति उस थाने में अपनी शिकायत दर्ज नहीं कराता है, जहां उसके साथ अपराध किया गया है | ऐसे में पीडि़त पुरूष अथवा कोई महिला दूसरे थानें में अपनी शिकायत दर्ज  करा सकती है, जिस थाना क्षेत्र में उसके साथ अपराध नहीं किया गया है। ऐसे में थानाध्‍यक्ष पीडि़त अथवा पीडि़ता की शिकायत दर्ज कर लेता है, और उस शिकायत संबंधित थाने को भेज दी जाती है। इस प्रकार की शिकायत / सूचना   (FIR) को ही Zero FIR कहते है। यह एक महत्वपूर्ण एफआईआर होती है ।  

Zero FIR पर सुप्रीम कोर्ट की क्‍या राय है ?

हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस आर.एस. सोढ़ी के मुताबिक, उच्‍चतम न्‍यायालय ने अपने एक महत्‍वपूर्णं निर्णंय में कहा था, कि भले ही अपराध किसी भी क्षेत्र में हुआ हो, लेकिन पुलिस जूरीस्डिक्‍शन के आधार पर FIR दर्ज करने से साफ इंकार नहीं कर सकती है। पुलिस को हर परिस्थिति में पीडि़त व्‍यक्ति की FIR दर्ज करनी ही होगी। भले ही अपराध किसी भी थाना क्षेत्र में हुआ हो। अगर कोई व्‍यक्ति अपनी शिकायत लेकर ऐसे किसी थाने में पहुंच जाता है, जिसका वास्‍ता आपराधिक घटना स्‍थल से नहीं है। तो भी पुलिस को शिकयत कर्ता की शिकायत पर कार्रवाही करते हुये FIR दर्ज करनी होगी।

किन मामलों में दर्ज होती है (FIR) एफआईआर ?

अपराध दो तरह के होते हैं । असंज्ञेय और संज्ञेय अपराध, जिनके विषय में विस्तृत जानकारी इस प्रकार है-

संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence)

संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) वह अपराध होते है, जिनकी श्रेणीं में बहुत ही गंभीर किस्‍म के अपराध शामिल किये जाते हैं। जैसे रेप, हत्‍या, जानलेवा हमला करना, गोली चलाना आदि मामले संज्ञेय अपराध के अंतर्गत आते है | इस तरह के किये जाने वाले सभी मामलों में FIR तुरंत दर्ज करना अनिवार्य होता है। ऐसे आपराधिक मामलों में CRPC की धारा 154 के तहत पुलिस विभाग को फौरन एफआईआर दर्ज करना आवश्‍यक होता है।

असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offence)

असंज्ञेय अपराध के अंतर्गत बहुत मामूली किस्‍म के अपराध शामिल किये जाते हैं। जैसे आपसी मारपीट आदि के मामले असंज्ञेय अपराध के अंतर्गत आते है | इन मामलों में सीधे FIR दर्ज नहीं की जाती है बल्कि इन्‍हें पहले मजिस्‍ट्रेट के पास भेजा जाता है, जिसके बाद मजिस्‍ट्रेट आरोपी व्‍यक्ति को समन जारी करता है और फिर बाद में ही आगे की कार्यवाही शुरू की जाती 

जीरो एफआईआर (ZERO FIR) दर्ज करना क्‍यों आवश्यक होता है?

संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) की श्रेणीं के अंतर्गत आने वाले सभी आपराधिक मामलों में पुलिस को तुरंत Zero FIR दर्ज करनी होती है। इसके  अतिरिक्त ऐसे मामलों में पुलिस को केस ट्रांसफर करने से पूर्व ही मामले की जांच भी शुरू कर देनी होती है | इस तरह की प्रक्रिया की शुरुआत करने से  शुरूआती सुबूत नष्‍ट नहीं हो पाते है और इतनी जल्दी कोई उन सुबूतो से छेड़छाड़ भी नहीं कर पाता है। जिस थाने में इस प्रकार की शिकायत दर्ज  की जाती है। वह थाना अपनी शुरूआती जांच रिपोर्ट के साथ बाद में घटना स्‍थल से संबंधित थाने में केस ट्रांसफर कर देता है। इस तरह पूरे मामले में की जाने वाली प्रक्रिया जीरो एफआईआर कही जाती है |



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