दुर्योधन राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा कौरव था। राजा का पहला पुत्र होने के नाते, वह कुरु वंश और उसकी राजधानी हस्तिनापुर का राजकुमार था। परंतु दुर्योधन अपने चचेरे भाई युधिष्ठर से छोटा था। कर्ण दुर्योधन का सबसे करीबी मित्र था। जब राजकुमारों की रंगभूमि जब जाति का भेदभाव कर कर्ण को रंगभूमि में भाग लेने से गुरु द्रोण ने सख्त मना कर दिए तो तब दुर्योधन ने कर्ण के साथ अधर्म न हो इसके लिए दुर्योधन ने कर्ण को अंगदेश का राजा घोषित कर दिया ।
दुर्योधन और बाकी कौरव भाई - बहन का जन्म महाभारत की एक वाचित्र और मुख्य घटना है। महाभारत के अनुसार महर्षि व्यास जी ने गांधारी को 100 पुत्रो को जन्म (शतपुत्र प्रपत्तिरस्तु) देने का आशीर्वाद (वरदान) दिया था। उसके बाद गांधारी गर्भवती हुई और लंबे समय तक गर्भव्यस्था में रही जिसके कारण गांधारी निराशा होती गई और आखिर एक दिन उसने अपने गर्भ पर जोरदार मुक्का मारा जिसके कारण गांधारी का गर्भ गिर गया। इसके बाद उसके गर्भ से एक मांस का लोथड निकला। उसके बाद महर्षि व्यास को बुलाया गया । उन्होंने इसको देख कर काफी निराशा हुई । इसके बाद उन्होंने उस मांस के टुकड़े पर कुछ मंत्र का जाप करते हुए जल के शिंटे मारे जिसके बाद वो लोथड़ के गेंद के बराबर 101 टुकड़े हो गए, उसके बाद उनको दूध से भरे हुए 101 अलग अलग बर्तनों में रख उनको पूरी तरह से सील करके किसी
सुरक्षित जगह पर दफन कर दिया और उसके बाद उनको दो वर्ष बाद खोलने के लिए कह कर व्यास वन की और चल दिए। इसके बाद पहले बर्तन को खोला तो उसमें दुर्योधन निकला दूसरे से दुशासन , तीसरे से विकर्ण , चौथे से कर्ण और बाकी बर्तनों से अन्य कौरव उत्पन्न हुए।
भीम संग गदा युद्ध
महाभारत के युद्ध के अठारवे दिन दुर्योधन को अपने करीबी कर्ण,द्रोण , दुशासन , शकुनि आदि की मृत्यु के बाद काफी दुख होता है। अब कौरव सेना में सिर्फ गिने चुने महारथी कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा आदि ही बचते है। जिसके बाद वो इस युद्ध में अकेला महसूस करने लगा और अपनी माता गांधारी के पास गया। उसकी मां ने उसको भीम के साथ होने वाली गदा युद्ध में सुरक्षित करने के लिए उसको बिना कपड़ों के उसके सामने आने के लिए कहा । दुर्योधन ने ऐसा ही किया, जब गांधारी ने अपने पुत्र के शरीर को पथर जैसा मजबूत बनाने के लिए अपनी आंखो से पटी हटाई तो उसने देखा दुर्योधन ने पूरी तरह से नग्न अवस्था में नहीं था अर्थात् उसने अपने नीचे के अंगो और अपनी जंघाओ को डका हुआ था। उसकी नजर दुर्योधन की जंघाओ को छोड़ कर उसके शरीर के जिस जिस अंग पर पड़ी वो पथर जैसा मजबूत बन गया । इसके बाद उसने तुरंत अपनी आंखे डक ली।और दुर्योधन को कहा उसने अपनी दृष्टि से उसकी जंघाओं को छोड़ कर बाकी सारा शरीर सुरक्षित कर दिया है। दुर्योधन अपनी इस आदि कामजाबी से निराश हो कर वहां से चल दिया। वह अपनी बची हुई कौरव सेना को छोड़ कर एक झील के अंदर ध्यान लगाने चला जाता है।
उधर युद्ध क्षेत्र में पांडव कौरव सेना की अनुपस्थिति को देख कर दुर्योधन को डूंडने के लिए श्री कृष्ण समेत निकल पड़ते है। जिसके बाद बड़ी मुश्किल से उनको झील में छिपे हुए दुर्योधन का पता चल जाता है । इसके बाद वो दुर्योधन को झील से बाहर आने और युद्ध करने के लिए ललकारते है। जिसको सुनकर दुरुयोधन झील से बाहर आ जाता है । और भीम से गदा युद्ध करता है। युद्ध में वो अपनी मां के दिए हुए लोहशरीर रूपी वरदान की बदौलत भीम को काफी हद तक हरा देता है। किन्तु आखिर में श्री कृष्ण भीम को इशारा कर दुर्योधन की जंघा पर गदा से वार करने के लिए और दुर्योधन की जंघाओं को तोड़ने की ली हुई प्रतिज्ञा को याद दिलाते है। जिसके बाद भीम दुर्योधन की झंगाओ पर वार करते है और उसको बुरी तरह गायल कर देते है। गदा युद्ध के नियम (गदा युद्ध में शरीर के निचले भाग पर हमला नहीं करते) को टूटता और अपने सबसे प्रिय शिष्य को मरता हुए देख बलराम वहां आते है और भीम पर हमला कर देते है जिनको श्री कृष्ण समझाते है और शांत करके बापस चले जाने के लिए मनाते है। उनके जाने के बाद श्री कृष्ण समेत सभी पांडव दुर्योधन को तडफता हुआ छोड़ कर वहां से चले जाते है।
मृत्यु
भीम के हाथों हारने के बाद दुर्योधन को आधा मरा हुआ छोड़ कर श्री कृष्ण समेत समस्त पांडव अपने शिवरो की और चले जाते है। रात के दौरान जब दुर्योधन तड़फ रहा होता है तब कौरव सेना के बचे हुए योद्धाओं में तीन योद्धा कृपाचार्य,अश्वत्थामा और कृत्वर्मा वहां आते है। तब दुर्योधन उनको अपनी हालत का कारण बताता है। जिसको देख अश्वत्थामा क्रोधित हो गया और दुर्योधन से पांडवो को मारने की प्रतिज्ञा कर पांडवो के शिवर कि और चला गया। उसके जाने के बाद रात के समय दुर्योधन का तड़प तड़प कर अंत हो गया।
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