अदिति

अदिति एक प्रतिष्ठित हिन्दू देवी है। पुराणों के आधार पर वे महर्षि कश्यप की पहली पत्नी थीं।

इनके बारह पुत्र हुए जो आदित्य कहलाए (अदितेः अपत्यं पुमान् आदित्यः)। उन्हें देवता भी कहा जाता है। अतः अदिति को देवमाता कहा जाता है। संस्कृत शब्द अदिति का अर्थ होता है 'असीम'। इंद्रविवस्वानवामनपूषावरुणपूषाअंशुमानपर्जन्यत्वष्टाभगमित्र और अर्यमा इनके पुत्र हैं ।

सूर्यजन्म

स्वर्गलोक की सत्ता के लोभ में दैत्यों और देवों में शत्रुता हो गई। दैत्यों और देवों के परस्पर युद्ध आरम्भ हो गये। एक समय दोनों पक्षों में भयङ्कर युद्ध हुआ। अनेक वर्षों तक वो युद्ध चला। उस युद्ध में देवों का दैत्यों स पराजय हो गया। सभी देव वनो में विचरण करने लगे। उनकी दुर्दशा को देखकर अदिति और कश्यप भी दुःखी हुए। पश्चात् नारद मुनि के द्वारा सूर्योपासना का उपाय बताया गया। अदिति ने अनेक वर्षों पर्यन्त सूर्य की घोर तपस्या की। सूर्य देव अदिति के तप से प्रसन्न हुए। उन्होंने साक्षात् दर्शन दिये और वरदान माँगने को कहा।

अदिति ने सूर्य की स्तुति की। तत्पश्चात् अदिति द्वारा वरदान माँगा गया कि – “आप मेरे पुत्र रूप में जन्म लेवें”। कालान्तर में सूर्य का तेज अदिति के गर्भ में प्रतिष्ठित हुआ । किन्तु एक बार अदिति और कश्यप के मध्य कलह उत्पन्न हो गया। क्रोध में कश्यप अदिति के गर्भस्थ शिशु को “मृत” शब्द से सम्बोधित कर बैठे। उसी समय अदिति के गर्भ से एक प्रकाशपुञ्ज बाहर आया। उस प्रकाशपुञ्ज को देखकर कश्यप भयभीत हो गये। कश्यप ने सूर्य से क्षमा याचना की। तब ही आकाशवाणी हुई कि – “आप दोनों इस पुञ्ज का प्रतिदिन पूजन करें। उचित समय होते ही उस पुञ्ज से एक पुत्ररत्न जन्म लेगा। वो आप दोनों की इच्छा को पूर्ण करके ब्रह्माण्ड में स्थित होगा।

समयान्तर में उस पुञ्ज से तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ। वही “विवस्वान” या “मार्तण्ड” नाम से विख्यात है। विवस्वान का तेज असहनीय था। अतः युद्ध में दैत्य विवस्वान के तेज को देखकर ही पलायन कर गये। सर्वे दैत्य पाताललोक में चले गये। अन्त में विवस्वान्न सूर्यदेव स्वरूप में ब्रह्माण्ड के मध्यभाग में स्थित हुए और ब्रह्माण्ड का सञ्चालन करते हैं।

दिति का शाप

दक्ष प्रजापति की ८४ कन्या थीं उनमें दो थीं दिति और अदिति । कश्यप के साथ उन दोनों और उनकी अन्य बहनों का विवाह हुआ था। अदिति ने इन्द्र को जन्म दिया। वह तेजस्वी था। अतः दिति ने भी महर्षि कश्यप से एक तेजस्वी पुत्र की याचना की। तब महर्षि ने पयोव्रत नामक उत्तम व्रत करने का उपाय प्रदान किया। महर्षि की आज्ञानुसार दिति ने उस व्रत को किया। समयान्तर में दिति का शरीर दुर्बल हो गया।

एक बार अदिति की आज्ञानुसार इन्द्र दिति की सेवा करने के लिये गया। इन्द्र ने छलपूर्वक दिति के गर्भ के सात भाग कर दिये। जब वें शिशु रुदन कर रहे थे, तब इन्द्र ने कहा – “मा रुदन्तु” । तत् पश्चात् पुनः प्रत्येक गर्भ के सात विभाग किये। इस प्रकार उनचास (४९) पुत्रों का जन्म हुआ। वें पुत्र मरुद्गण कहे जाते हैं, जो कि उनचास हैं। इन्द्र के अभद्र कार्य से क्रुद्ध दिति अदिति को शाप देती है कि – “इन्द्र का राज्य शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा। जैसा अदिति ने मेरे गर्भ को गिराया, वैसे ही उसका भी पुत्र जन्म समय में ही नष्ट हो जाएगा”।

शाप के प्रभाव से हि द्वापरयुग में कश्यप ऋषि का वसुदेव के स्वरूप में, अदिति का देवकी के रूप में और दिति का रोहिणी के रूप में जन्म हुआ। देवकी के छ: ( सातवीं संतान बलराम थे ) पुत्रों की कारागार में कंस ने हत्या कर दी। तत् पश्चात् अष्टम पुत्र विष्णु के अवतार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। अन्त में कृष्ण ने अपने मातुल (मामा) कंस का वध किया था ।

वामन अवतार

राजा बलि असुरराज थे। देवों और राजा बलि के मध्य युद्ध होते ही रहते थे। अन्त में देव पराजित हुए । देवों की स्थिति दयनीय हो चुकी थी। उनकी माता अदिति भी अपने पुत्रों के दुःख से दुःखी थीं। उस समय कश्यप ऋषि वन में तपस्या कर रहे थे। जब उनका तप पूर्ण हुआ, तो अदिति ने देवों की स्थिति सुनाई। देवों के कल्याण के लिये उपाय भी उन्ह से पूछा। पयोव्रत पूर्वक विष्णु की भक्ति का उपाय कश्यप ऋषि ने बताया।

अदिति द्वारा पयोव्रत पूर्वक भगवान् विष्णु की उपासना की गई। कुछ दिनो के अनन्तर भगवान् विष्णु प्रसन्न हुए। भगवान् विष्णु प्रकट हो कर बोले कि – “हे देवि ! आपने श्रद्धा पूर्वक मेरी उपासना की है। अतः “मैं आपके गर्भ से अवतार धारण करूंगा। वह मेरा वामन अवतार होगा। मैं असुरों का संहार और देवों का रक्षण करूंगा” ये आपको वर देता हूँ।

कश्यप ऋषि भविष्यदर्शी थे। अतः वह पूर्व ही अगवत थे कि – “विष्णु अदिति के गर्भ से वामन अवतार धारण करेंगे” । तत्पश्चात् वें अपने तेज से अदिति के गर्भ में प्रवेश कर गये। समयान्तर में भगवान् विष्णु का वामन अवतार हुआ।

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