प्रद्युम्न

 प्रद्युम्न  हिंदू देवताओं कृष्ण और रुक्मिणी के सबसे बड़े पुत्र हैं । प्रद्युम्न को विष्णु के चार व्यूह अवतारों में से एक माना जाता है । भागवत पुराण के अनुसार, प्रद्युम्न प्रेम के देवता कामदेव का पुनर्जन्म था। महाभारत में उल्लेख है कि प्रद्युम्न सनत कुमार का हिस्सा था 


प्रद्युम्न की पहली पत्नी मायावती थी, जो काम की पत्नी 
रति का अवतार थी । पहले तो प्रद्युम्न ने आपत्ति की, लेकिन जब उसने उसे बताया कि वह उससे शादी करने के लिए नियत है, तो वह आश्वस्त हो गया। 

भगवान शंकर के शाप से जब कामदेव भस्म हो गया तो उसकी पत्नी रति अति व्याकुल होकर पति वियोग में उन्मत्त सी हो गई। उसने अपने पति की पुनः प्राप्ति के लिये देवी पार्वती और भगवान शंकर को तपस्या करके प्रसन्न किया। पार्वती जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तेरा पति यदुकुल में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेगा और तुझे वह शम्बासुर के यहाँ मिलेगा। इसीलिये रति शम्बासुर के घर मायावती के नाम से दासी का कार्य करने लगी।

“इधर कामदेव रुक्मणी के गर्भ में स्थित हो गये। समय आने पर रुक्मणी ने एक अति सुन्दर बालक को जन्म दिया। उस बालक के सौन्दर्य, शील, सद्गुण आदि सभी श्री कृष्ण के ही समान थे। जब शम्बासुर को पता चला कि मेरा शत्रु यदुकुल में जन्म ले चुका है तो वह वेश बदल कर प्रसूतिकागृह से उस दस दिन के शिशु को हर लाया और समुद्र में डाल दिया।


समुद्र में उस शिशु को एक मछली निगल गई और उस मछली को एक मगरमच्छ ने निगल लिया। वह मगरमच्छ एक मछुआरे के जाल में आ फँसा जिसे कि मछुआरे ने शम्बासुर की रसोई में भेज दिया। जब उस मगरमच्छ का पेट फाड़ा गया तो उसमें से अति सुन्दर बालक निकला। उसको देख कर शम्बासुर की दासी मायावती के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह उस बालक को पालने लगी।


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उसी समय देवर्षि नारद मायावती के पास पहुँचे और बोले कि हे मायावती! यह तेरा ही पति कामदेव है। इसने यदुकुल में जन्म लिया है और इसे शम्बासुर समुद्र में डाल आया था। तू इसका यत्न से लालन-पालन कर। इतना कह कर नारद जी वहाँ से चले गये। उस बालक का नाम प्रद्युम्न रखा गया। थोड़े ही काल में प्रद्युम्न युवा हो गया। प्रद्युम्न का रूप लावण्य इतना अद्भुत था कि वे साक्षात् श्री कृष्णचन्द्र ही प्रतीत होते थे। रति उन्हें बड़े भाव और लजीली दृष्टि से देखती थी। तब प्रद्युम्न जी बोले कि तुमने माता जैसा मेरा लालन-पालन किया है फिर तुममें ऐसा परिवर्तन क्यों देख रहा हूँ? तब रति ने कहा –


“पुत्र नहीं तुम पति हो मेरे। मिले कन्त शम्बासुर प्रेरे॥

मारौ नाथ शत्रु यह तुम्हरौ। मेटौ दुःख देवन कौ सिगरौ॥

“इतना कह कर मायावती रति ने उन्हें महा विद्या प्रदान किया तथा धनुष बाण, अस्त्र-शस्त्र आदि सभी विद्याओं में निपुण कर दिया। युद्ध विद्या में प्रवीण हो जाने पर प्रद्युम्न अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित होकर शम्बासुर की सभा में गये। शम्बासुर उन्हें देखकर प्रसन्न हुआ और सभासदों से कहा कि इस बालक को मैंने पाल पोष कर बड़ा किया है। इस पर प्रद्युम्न बोले कि अरे दुष्ट! मैं तेरा बालक नहीं वरन् तेरा वही शत्रु हूँ जिसको तूने समुद्र में डाल दिया था। अब तू मुझसे युद्ध कर।

“प्रद्युम्न के इन वचनों को सुनकर शम्बासुर ने अति क्रोधित होकर उन पर अपने बज्र के समान भारी गदा का प्रहार किया। प्रद्युम्न ने उस गदा को अपनी गदा से काट दिया। तब वह असुर अनेक प्रकार की माया रच कर युद्ध करने लगा किन्तु प्रद्युम्न ने महा विद्या के प्रयोग से उसकी माया को नष्ट कर दिया और अपने तीक्ष्ण तलवार से शम्बासुर का सिर काट कर पृथ्वी पर डाल दिया। उनके इस पराक्रम को देख कर देवतागणों ने उनकी स्तुति कर आकाश से पुष्प वर्षा की। फिर मायावती रति प्रद्युम्न को आकाश मार्ग से द्वारिकापुरी ले आई। गौरवर्ण पत्नी के साथ साँवले प्रद्यम्न जी की शोभा अवर्णनीय थी।”


उन्होंने अपने मामा रुक्मी की बेटी रुक्मावती से भी शादी की । ऐसा कहा जाता है कि रुक्मावती ने अपनी वीरता, सुन्दरता और आकर्षण को शब्दों से परे पाया और अपने स्वयंवर में उससे शादी करने पर जोर दिया। उसके साथ, उन्होंने कृष्ण के पोते और पसंदीदा, को विष्णु, अनिरुद्ध का एक व्यूह अवतार भी माना । प्रभावती एक असुर राजकुमारी थी, उसे प्रद्युम्न से प्यार हो गया और वह उसके साथ भाग गया।

भागवत पुराण, सर्ग 10, अध्याय 61 के अनुसार, अनिरुद्ध प्रद्युम्न और रुक्मावती के पुत्र थे। बाद में उषा ( बाना दैत्य की बेटी और महाबली की पोती ) ने उनका अपहरण कर लिया, जो उनसे शादी करना चाहती थीं।  उषा के पिता, बाणासुर ने, हालांकि, अनिरुद्ध को कैद कर लिया, जिससे भगवान कृष्ण और भगवान शिव के बीच युद्ध हुआ। युद्ध में, प्रद्युम्न ने शिव के पुत्र कार्तिकेय को हराया , जो उनके मोर पर सवार होकर भाग गए थे। युद्ध के अंत में, बाणासुर हार गया और अनिरुद्ध और उषा का विवाह हो गया।

वे नव-दम्पति श्री कृष्ण के अन्तःपुर में पहुँचे। रुक्मणी सहित वहाँ की समस्त स्त्रियाँ साक्षात् श्री कृष्ण के प्रतिरूप प्रद्युम्न को देखकर आश्चर्यचकित रह गये। वे सोचने लगीं कि यह नर श्रेष्ठ किसका पुत्र है? न जाने क्यों इसे देख कर मेरा वात्सल्य उमड़ रहा है। मेरा बालक भी बड़ा होकर इसी के समान होता किन्तु उसे तो न जाने कौन प्रसूतिकागृह से ही उठा कर ले गया था। उसी समय श्री कृष्ण भी अपने माता-पिता देवकी और वसुदेव तथा भाई बलराम के साथ वहाँ आ पहुँचे। श्री कृष्ण तो अन्तर्यामी थे किन्तु उन्हें नर लीला करनी थी इसलिये वे बालक के विषय में अनजान बने रहे। तब देवर्षि नारद ने वहाँ आकर सभी को प्रद्युम्न की आद्योपान्त कथा सुनाई और वहाँ उपस्थित समस्त जनों के हृदय में हर्ष व्याप्त गया।

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